पत्थर © रमन यादव
दिए प्रीत के दो दिलों में,
लहू तेल से जलते हों,
पर प्रेम के संबंध सारे,
सकल जगत को खलते हों,
लोक-दिखावा, झूठी इज्जत,
बीज विरह के बोता है,
बर्बादी ये देख देख कर,
इंसाँ पत्थर होता है।
पुत्री के मन चाहे को,
जाति पर धुत्कार कर,
जाति धर्म की व्यवस्था में,
पिता समाज से हार कर,
अजनबी संग प्रिय सुता का,
मिथ्या संबंध जोता है,
बर्बादी ये देख देख कर,
इंसाँ पत्थर होता है।
मेहंदी बेटी के हाथों पर,
प्रीत जला रंगवाई हो,
दहेज असुर ने फिर बेटी,
जीते जी जलाई हो,
पिता अदालत के दर पर,
बेसुध हो कर रोता है,
बर्बादी ये देख देख कर,
इंसाँ पत्थर होता है।
© रमन यादव
🌼🌷💐💐💐💐waah
जवाब देंहटाएंBahut Sundar 😍
जवाब देंहटाएं👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंAdhbhut👏👏👏👏 superb
जवाब देंहटाएं❣️ true words.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत 💐
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण रचना 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंAap sab ka bahut shukriya
जवाब देंहटाएं💝👌
जवाब देंहटाएंFact of life... Well penned Raman ji...💐💐💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण 👌👌👌
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
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