माता ©नवल किशोर सिंह

 माता की अस्थियाँ हाथ में,

मन के प्रश्न साथ में।


इसे कहाँ विसर्जित करूँ?

कैसे विसर्जित करूँ?

और क्यों विसर्जित करूँ?


क्या ये गंगा में बह जाएगी?

किन्तु,वो अस्थियाँ

जो माता ने हमें दी है,

वो तो यहीं रह जाएगी।

हमारे शरीर में,

यह भस्म-भूत नहीं,

एक चेतन है।

मातृ-अंश-कण है।


मरती है क्या माता?

महज राख क्षार बहने से।

नहीं,माता कभी मरती नहीं,

लोगों के कहने से।


सत्ता अदृश्य में लीन हुई।

या,परम पद आसीन हुई।

अरे,माता,जीवन का पर्याय।

सृष्टि का सबल अभिप्राय।


पालन,पोषण औ जीवन-दान।

जग में यहीं कहीं विद्यमान।

हम में,तुम में,सब में

सदैव रहेगी विराजमान।

माता,सार्वकालिक है,अनश्वर है ।

माता, अपर रूप ईश्वर है।

             -©नवल किशोर सिंह

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर रचना 👌👌 सभी माता को mother's day की बढ़ाई.

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  2. Aati Sundar rachna sabhi matao ko samarpit ❤️❤️

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  3. अत्यंत संवेदनशील एवं उत्कृष्ट सृजन 👌👌👌👏👏👏🙏

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