विरह ©अभी मिश्रा
बेरंग थीं उस रोज़ फिज़ाएं,
उस रोज़ सुहानी शाम ना थी l
एक लम्हा ऐसा ना बीता,
जिस पल को घड़ी बदनाम ना थी l
वो पास था मेरे इस लम्हे,
अगले लम्हे में ना होता l
ऐसे हालातों में आख़िर,
मैं करता क्या जो ना रोता।
उस रोज़ को मैंने सजदे में,
बरसों तक रब से माँगा था l
एक चेहरे की तस्वीरों को,
दिल - ओ - दीवार पे टांगा था।
तब वक्त जो दौड़ा जाता था,
तुझ बिन अब जैसे ठहरा है l
मदमस्त हुआ सा फिरता था,
उस वक्त पर जैसे पहरा है।
उस रोज़ को कहता मैं तुमसे,
अपने इस दिल का हाल, मगर l
मैं दोहरा दूंगा फ़िर वो पल,
हम फ़िर जो मिले इस साल अगर।
©अभी मिश्रा
Congratulations Bhai ji... 😊👌✨
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत 👌👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंWaah gazab bhaiya ji 😍
जवाब देंहटाएंअहा 👌🏼👌🏼
जवाब देंहटाएंवाह👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत 💐
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएं👌👌👏
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
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