प्रेम ©रमन यादव
प्रेम में जान न दे जान लगा जीने में,
छोड़ परहेज सभी प्रेम सुरा पीने में,
रूठ महबूब अगर आज जरा भी जाए,
कल नहीं आज मना और बसा सीने में।
प्यार का नाम न लें प्यार अगर झूठा हो,
प्यार का नाम अगर प्यार ने' ही लूटा हो,
वो सनम ख़ाक सनम हाथ से' जिसके पल में,
हाथ माशूक का' बिन बात झगड़ छूटा हो।
जानते प्रेम की क्यों आज बुरी हालत है,
प्रेम अब स्वार्थ जनित जो की बुरी आफत है,
काम की चाह को जब नाम दिया चाहत का,
धारणा प्रेम की' यह प्रेम ही' पर लानत है।
इश्क़ क्या इश्क़ भला इश्क़ अकेला तन का
हाल बेहाल न हो इश्क़ में' डूबे मन का,
तन ज़रा आज नहीं होगा' अगर, हो कल,
बिन तड़प मन में' उठे इश्क़ दृश्य हो वन का।
प्रेम कमजोर न हो साल महीने भर में,
साथ मजबूत लगे नित, न विरह के डर में,
जब लगे दूर चला साथ मिरा हर पल का,
थाम लो हाथ सदा प्यार से' अपने कर में।
© रमन यादव
Bahut khoob Bhaiya ji ❤️
जवाब देंहटाएंFabulous. 😘❣️
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है बहुत सुंदर 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब!👌
जवाब देंहटाएंBahut shukriya aap sabhi ka
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
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