शाइरी © रजनी सिंह
तेरी शहवत से हमें ज़ब बेख़बर रक्खा गया l
यानी फिर हर एक शय से मोतबर रक्खा गया l
पहले आँखें ज़िस्म-ओ-जाँ को फिर ज़बीन-ए-ख़ास को...
उनके पहलू में हमारा दिल किधर रक्खा गया l
उस निग़ाह-ए-नाज़ से याँ तो सभी बेज़ार थे..
दिल यहाँ किसने लगाया दिल मगर रक्खा गया l
कौन सोचे किसने सोचा कौन सोचेगा यहाँ
तुम उधर रक्खे गए हमको इधर रक्खा गया l
हम तो उनकी आरज़ू सर आँख पे रखते रहे...
पर वफाओं को हमारी दर-ब-दर रक्खा गया l
जानते हैँ वो न होगी शाइरी उनके बगैर...
इसलिए शाइर हमारा क़ैद कर रक्खा गया l
©rajni singh
gazab didi
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन ग़ज़ल.. वाह्ह्हह्ह्ह्ह 💐💐
जवाब देंहटाएंउम्दा👌👌
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा गज़ल डियर 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻❤️
जवाब देंहटाएंअहा खूबसूरत गजल 👌🏼
जवाब देंहटाएं👌👌👌
जवाब देंहटाएं🎀Superb🎀
जवाब देंहटाएं🎀Gjb🎀
🎀Osm🎀
🎀Lajawab🎀
🎀Umda🎀
🎀Mind blowing🎀
🎀Outstanding post🎀