ग़ज़ल - बारिशें ©गुंजित जैन
हवाओं में समाएं बारिशें ये,
जहां को हैं सजाएं बारिशें ये।
यहाँ पर जिस्म तो हर भीग जाते,
मिरे दिल को भिगाएं बारिशें ये।
कहीं पर ढूंढता इनमें तुम्हें मैं,
तुम्हारी याद लाएं बारिशें ये।
दिखे इनमें तुम्हारा अक़्स मुझको,
मुझे अक्सर सताएं बारिशें ये।
चमकती है यहाँ हर बूँद गुंजित,
मुसलसल मुस्कराएं बारिशें ये।
©गुंजित जैन
Bahut khoob Bhai ❤️
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी🙏
हटाएंबहुत बढ़िया 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार मैम🙏
हटाएंआभार सर🙏
जवाब देंहटाएंG*** le liye bhaiya aap to
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भाई
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी💐
हटाएंAfreen 😍
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी💐
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