ग़ज़ल-ज़िंदगानी ©प्रशान्त
बहृ - बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न -2122 2122 2122 212
मंज़िलों तक रास्तों की आगवानी चाहिये |
किस्मतों को मेहनतों की इम्तिहानी चाहिये ||
ज़ाम पीकर रिंद बोले ज़िन्दगी क्या खूब है...
होश में आए तो चीखे मौत आनी चाहिये ||
खो गया सबका बुढ़ापा याद कर क्यूँ बचपना...
मौत के पहले जरा सी जिन्दगानी चाहिये ||
दो पहर की भूख सारे दिन को कच्चा खा गयी...
शाम होते आदमी को रात-रानी चाहिये ||
ज़िन्दगी जब हादसों का दम-ब-दम तूफान हो...
ताकतें तब क़श्तियों की आज़मानी चाहिये ||
अश्क़ तेरे दर्द पर कोई बहाये क्यूँ 'ग़ज़ल'......
आदमी को कहकहे, किस्से, कहानी चाहिये ||
©प्रशान्त 'ग़ज़ल'
बेह्तरीन गजल.. हर शेर उम्दा 💐
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंBahut khoob Sirji 👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना 😍
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