लेखनी ©गुंजित जैन
क़लम की हर कमाई लेखनी है,
शिफ़ा ये है, दवाई लेखनी है।
जहां मुझको लगे अब ये कफ़स सा,
मिली जो वो रिहाई लेखनी है।
ख़यालों में हमेशा ही रहे ये,
ज़हन में सिर्फ छाई लेखनी है।
अँधेरों में छुपा मेरा जहां है,
यहाँ महताब लाई लेखनी है।
अधूरा हर्फ़ है गुंजित यहाँ पर,
मुक़म्मल सी रुबाई लेखनी है।
©गुंजित जैन
बहुत खूबसूरत👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार मैम🙏🙏
हटाएंबहुत खूब .....
जवाब देंहटाएंलेखनी के प्रति आपके समर्पण को नमस्कार
आभार भाई जी🙏
हटाएंBahut Sundar bhai 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी🙏
हटाएंवाह! लेखनी के प्रति आपके समर्पित भाव को नमन।🙏😊✨
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका🙏
हटाएंसादर आभार सर🙏
जवाब देंहटाएंलेखनी को अर्पित अमूल्य कृति 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएं.....लेखनी है 😊😊🙌👌👍👏🏻👏🏻👏🏻
सादर आभार🙏🙏
हटाएंउम्दा 👏👌👌
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