गजल ©अनिता सुधीर

 काफिया    ऐ

रदीफ़       भी  खूब थे 


रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे 

दिलजलों के अनकहे भी खूब थे


ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे

इश्क़ तेरे फ़लसफ़े भी खूब थे 


अश्क आँखो से बहे थे उन दिनों

अब्र क्यों तब बरसते भी खूब थे 


कब तलक हम साथ यों रहते यहाँ

दरमियाँ ये फासले भी खूब थे ।


जी रहे तन्हाई में हम क्यों यहाँ

आप के तो कहकहे भी खूब थे 

                @अनिता सुधीर आख्या

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