मन-सरोवर ©विपिन बहार

वज्न -2122,2122

विधा-गीत


 ताप तन का बढ़ रहा है ।

मन सरोवर सूखता है ।।


तोड़ डाला खास ने अब ।

साथ छोड़ा आस ने अब ।।

पीर तन की भाँपता हूँ ।

कब मरूँगा आँकता हूँ ।।


रात-भर बस कँपकपी है..

ज्वार-भाटा फूटता है ।।

मन सरोवर सूखता है..


भावनाएँ खार लगती ।

जिंदगी अब भार लगती ।।

चित रहा अब विचलनों में ।

झूठ सच के उलझनों में ।।


ये धरा भी खूब रोती..

आदमी जब टूटता है ।।

मन सरोवर सूखता है...


जिंदगी की ये कहानी ।

फूल बिन बस बागवानी ।।

कह रही अब शायरी है । 

अब सफर बस आख़िरी है ।।


साँस से है अब लड़ाई ।

यार जीवन छूटता है ।।

मन सरोवर सूखता है...

  ©विपिन बहार

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👏👏👏💐💐💐💐

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  2. भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना👏🏻👏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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  3. अत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐

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  4. बहुत सुंदर रचना भैया जी ❤️🙏

    जवाब देंहटाएं

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