मन-सरोवर ©विपिन बहार
वज्न -2122,2122
विधा-गीत
ताप तन का बढ़ रहा है ।
मन सरोवर सूखता है ।।
तोड़ डाला खास ने अब ।
साथ छोड़ा आस ने अब ।।
पीर तन की भाँपता हूँ ।
कब मरूँगा आँकता हूँ ।।
रात-भर बस कँपकपी है..
ज्वार-भाटा फूटता है ।।
मन सरोवर सूखता है..
भावनाएँ खार लगती ।
जिंदगी अब भार लगती ।।
चित रहा अब विचलनों में ।
झूठ सच के उलझनों में ।।
ये धरा भी खूब रोती..
आदमी जब टूटता है ।।
मन सरोवर सूखता है...
जिंदगी की ये कहानी ।
फूल बिन बस बागवानी ।।
कह रही अब शायरी है ।
अब सफर बस आख़िरी है ।।
साँस से है अब लड़ाई ।
यार जीवन छूटता है ।।
मन सरोवर सूखता है...
©विपिन बहार
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👏👏👏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैंम👏👏
हटाएंभावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना👏🏻👏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका👏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका👏👏
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया आपका👏👏
हटाएंबहुत सुंदर रचना भैया जी ❤️🙏
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका👏
हटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह 💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर👏👏
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