ग़ज़ल ©हेमा कांंडपाल

 ख़ामुशी होंटों की ज़ीनत बन गई

और   तन्हाई  ज़रूरत  बन  गई 



हमने बस बादल को उल्टा कर दिया

आसमाँ   पर   तेरी   सूरत  बन  गई 



एक  पुतले  को  तपाया आग में

और मिट्टी पक के औरत बन गई 



दूध मॉं का छक के पीते बाल को

ओढ़नी की छाव जन्नत बन गई 



हाल दिल का जान जाते हैं सभी

शायरी भी इक मुसीबत बन गई 



बेबसी को देख कर हक़ बात की

झूठ कहना मेरी आदत बन गई 


©हेमा कांंडपाल 'हिया '

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