ग़ज़ल ©प्रशान्त
आज सुबहा भूल जाओ , जो सुनी कल रात को l
और हाँ! देखो नफा हो तो पकड़ लो बात को ll
जिंदगी है या बना लो चार दिन की चाँदनी....
या सजा लो चार-चाँदों से हरिक लम्हात को ll
झूठ सच क्या था न जानूं, पर कहानी खूब थी....
जिन्न आदम ढूँढते थे , आदमी जिन्नात को ll
आँख पे पट्टी बँधी , काले लिबासों में जिरह....
जुल्म है! ऐसी अदालत सुन रही ज़ुल्मात को ll
अब वतन में बम-धमाके बारहा होते नहीं.....
इस तरह भी देख लेना आज के हालात को ll
कल शहादत हो गई तो काम ये करना 'ग़ज़ल'...
इक तिरंगा भेज देना कानपुर देहात को ll
© प्रशान्त
बेहतरीन👏
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन मर्मस्पर्शी गज़ल 💐💐💐🇮🇳💙🙏🏼
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत 👏👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंBahut sundar Sirji❤️
जवाब देंहटाएंWahhhhhhh
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