रात ने पर फैलाए ©रेखा खन्ना

 रात ने पर फैलाए

आसमां में तारे जगमगाए

कुछ जूग्नू हाथ में लेकर

अंधेरी बलाओं के दिल जलाए।


रात ने पर फैलाए

लोगों ने चराग जलाए

कुछ पतंगें रौशनी पर मंडराए

अंत में अपनी जान गंवाए।


रात ने पर फैलाए

झींगुरों ने साज बजाए

अंधेरे जंगल में  संगीत सजाए

कुछ परिंदों के पँख फड़फड़ाए।


रात ने पर फैलाए

नैनों में सपने उतर आए

नींद में भी होठ मुस्काए

जब जब पिया गले लगाए।


रात ने पर फैलाए

कुछ दरिंदें सड़क पर आए

यहाँ वहाँ नजरें गड़ाए

ढूँढे किस कली को अब मसला जाए।


रात ने पर फैलाए

चाँद मेरी खिड़की पर आए

देख मुझे सोता ना जाने क्यूंँ मुस्काए

गुपचुप मेरा पता फिर साजन को दे आए।


रात ने पर फैलाए

चाँद तारों की बारात सजाए

चाँदनी लहरों पर उतर आए

नीले समंदर को चांदी के रंग में रंग जाए।


रात ने पर फैलाए

दिन खत्म होने की आवाज़ लगाए

पंँछी भी लौट घर को आए

अंधेरे में अब कहाँ उड़ने जाए।

© रेखा खन्ना

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण, सटीक
    कुछ दरिंदे सड़क पर उतर आये 💐💐💐🙏🙏🙏

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  2. अति सुंदर एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ 💐💐🙏🏼

    जवाब देंहटाएं

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