कार्तिक की निर्मल उजियास ©सरोज गुप्ता

 कुछ प्रकाश के पुंजों के संग , 

प्रज्ज्वलित ये मन में वास है । 

अद्भुत निर्मल उजियास है ।। 


धरती से अम्बर तक फैले

जैसे छोटे बड़े सितारे, 

आज अमावस रात बन गई

जैसे पूनम के उजियारे, 

काली चादर पर छिटके ज्यों

स्वर्ण नक्षत्र का भास है । 

अद्भुत निर्मल उजियास है ।। 


कार्तिक मास सुहाना लागे,

घर,ऑंगन,ड्योढ़ी है साजे,

तुलसी की बिरवा भी देखो

चौरे पर क्या खूब विराजे, 

मंगल स्वर में भजन गीत के

लगता नित अरदास है । 

अद्भुत निर्मल उजियास है ।।


उत्सव भरा मास ये आया

धनतेरस बाजार सजाया,

तैय्यारी चौदस करवाये

दीपोत्सव क्या धूम मचाये,

गोवर्धन और दूज भाई की

लाया मन में उल्लास है । 

अद्भुत निर्मल उजियास है ।।

   © सरोज गुप्ता

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'