कविता-पावस ©संजीव शुक्ला
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
शांत सरल नीले अंबर में,
कुछ चंचल मेघों का आना l
मन का उजला कोना-कोना,
अनायास श्यामल कर जाना l
क्षण-क्षण नील गगन के पट पर,
पल-पल रूप बदलते बादल l
जब-जब अठखेली करते हैँ,
शीतल पवन झकोरे चंचल l
जग उठते स्मृतियाँ बनकर,
बीते युग के कुछ सुंदर पल l
शीतल हो जाता है क्षण भर,
तृषित हृदय का तप्त मरुस्थल l
दूर क्षितिज से अंजुलि में भर,
जब घन लाते हैँ शीतल जल l
सरिता इठलाकर बह चलती,
शोर मचाते झरने कल-कल l
कभी पखावज पर मेघों की,
देकर ताली ताल मिलाना l
कभी बून्द की रिमझिम सरगम,
संग झूमना,हँसना,गाना l
किन्तु विषादी भी होती है,
कभी-कभी सावन की झरझर l
झरती हैँ पावस की बूंदे,
जब अंबर से सुधियाँ बनकर l
©संजीव शुक्ला 'रिक्त'
बहुत सुंदर कविता सरजी🙏👌
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंपावस के अत्यंत अद्भुत सौंदर्य पर बहुत ही उत्कृष्ट, भावपूर्ण कविता सर🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन, बढिया गीत शुक्ला साहब
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं मनमोहक कविता, नमन।
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट कविता सृजन भाई 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता
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