ग़ज़ल ©परमानन्द भट्ट

 हुई जब सुब्ह तो हिस्सा बना दिल की कहानी का

तुम्हारा ख़्वाब था या फूल कोई रातरानी का


ज़िगर का खून जब अल्फ़ाज़ में ढलता ग़ज़ल होती

महज़ किस्सा नहीं यह आँसुओं की तर्जुमानी का


 पिया जब जह्र तो सुकरात ने हँसकर कहा सबसे

यही तो हश्र होना था हमारी सच ब़यानी का


 जलेगा उम्र भर या तू उसी में डूब जाएगा

जिसे सब इश्क़ कहते वो समंदर आग पानी का


 शिखर को छोड़ कर बेताब हो वह दौड़ती‌ क्यूँ है

समंदर जानता है  राज नदियाँ की रवानी का


 हमारे द्वार पर आकर हमेशा लौट जाती वो

हमें मौका नहीं देती सफलता मेज़बानी का


 खिलाता फूल जो हर दिन, सुखाता भी वही उनको

युगों से सिलसिला जारी,'परम' की ब़ागब़ानी  का


©परमानन्द भट्ट

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