ग़ज़ल ©प्रशांत
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
वक़्त लेते नहीं गिराने में,
बे-रहम लोग हैं ज़माने में।
आप रिश्ता नया बनाते हैं,
क्या नफ़ा अब नहीं पुराने में?
जान झोंकी कभी कहाँ किसने,
एक रिश्ता यहाँ निभाने में ?
ज़िन्दगी सिर्फ़ चार दिन की थी,
उम्र गुज़री ये जान पाने में।
आशियाँ फ़िर किसी परिंदे का,
छिन गया है मकाँ बनाने में।
हाथ था हर दफ़ा सियासत का,
आपसी फ़ासले बढ़ाने में।
ज़िन्दगी रोज ख़र्च करते हैं,
हम महज़ ज़िन्दगी कमाने में।
शेर मारो 'ग़ज़ल' मगर सुन लो,
तीर जाकर लगे निशाने में।
©प्रशांत "ग़ज़ल"
Bahut sundar gazal👌🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन ग़ज़ल 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल बेटा 👏👏👏❤❤❤
जवाब देंहटाएंजिंदगी सिर्फ चार दिन की थी,
उम्र गुज़री ये जान पाने में 👌👌👌💐💐
बेहतरीन बेबाक़ गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल 💐💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
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