लम्हों की रेलगाड़ी ©रेखा खन्ना
लम्हों की रेलगाड़ी
किसी स्टेशन पर रूकती नहीं
हाथ बढ़ाओ छूने को गर
लम्हा कहे मैं हाथ आता नहीं
अदृश्य होकर दो कदम आगे चलता
मैं चलता उसके पीछे-पीछे।
लम्हों की रेलगाड़ी
ना छुक-छुक करती, ना ही सीटी मारती
बस चुपचाप खिसकती जाती
जाने कौन सा स्टेशन होगा आखरी
जाने कौन सी साँस होगी आखिरी
आखिरी साँस पर लम्हा रूकेगा बस दो घड़ी
फिर नवजीवन लेकर किसी के भीतर
एक नए स्टेशन से सफ़र शुरू करेगा अपनी।
अंतहीन सफ़र का है यात्री
पुराने सफ़र को त्याग कर
करता आग़ाज़ नए सफ़र का
ना थकता, ना रूकता कभी
बस फिरता रहता यहाँ वहाँ हर घड़ी
समय की सुइयों से बँधा हैं
दो घड़ी क्यूँ एक जगह नहीं टिकता हैं
लम्हों की रेलगाड़ी
दुनियाँ में नहीं सगी किसी की।
©रेखा खन्ना
सच कहा लम्हों की गाड़ी ना रुकती है ना छुक छुक होती ना सीटी बजाती है. सटीक रचना
जवाब देंहटाएंShukriya apka
हटाएंबहुत सुंदर रचना 🙏🙏
जवाब देंहटाएंShukriya apka
हटाएंसत्य कहा आपने,
जवाब देंहटाएंएक जगह नहींं टिकता है लम्हों की रेलगाड़ी
अत्यंत गहरे भाव समेटे बहुत ही सटीक लेखन 🙏🙏💐💐❤❤
Ji shukriya apka
हटाएंयथार्थ दर्शाती हुई भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी रचना 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंShukriya apka
हटाएंअहा, बेहद भावपूर्ण रचना❣️✨🙏
जवाब देंहटाएंShukriya apka
हटाएंJi shukriya apka
जवाब देंहटाएंलम्हों की रेलगाड़ी... क्या कमाल का ख़याल है❤️
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य "लम्हों को रेलगाड़ी" ❤️
जवाब देंहटाएं