गज़ल ©दीप्ति सिंह
आजकल सुनता नहीं दिल क्या करें ।
शायरी लिखना है मुश्किल क्या करें ।
है ज़हन ख़ाली मेरा अल्फ़ाज़ से...
और उलझन भी है शामिल क्या करें ।
आपसे कैसे करें चाहत बयाँ...
जब नहीँ अल्फ़ाज़ काबिल क्या करें ।
आप तो रहते हैं सबकी रूह में...
बस नहीं होते हैं हासिल, क्या करें ।
आपकी खुशबू नहीं जिस साँस में...
लग रही वो साँस कातिल क्या करें ।
आपका चर्चा नहीं होता जहाँ...
है बड़ी मनहूस महफ़िल क्या करें ।
आपकी 'दीया' में कुछ बाक़ी नहीं,
दे चुके जब आपको दिल क्या करें ।
©दीप्ति सिंह "दीया"
हृदय तल से आभार लेखनी 🙏🏼💐😊
जवाब देंहटाएंआहा, बेहद भावपूर्ण और सुंदर गजल हुई है❣️✨🙏
जवाब देंहटाएंहृदय तल से धन्यवाद आपका अंशुमान 💐😊
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका तुषार 😊💐
हटाएंवाह क्या गजब ग़ज़ल लिखी है
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया डियर 😊💐
हटाएंबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है मैम🙏
जवाब देंहटाएंहृदय तल से धन्यवाद आपका गुंजित 💐😊
हटाएंवाह! बहुत सुंदर प्रिय सखी...👌
जवाब देंहटाएं@दीप्ति जी 💐🙏
हृदय तल से आभार आपका प्रिय सखी 💐😊
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल डियर 💐💐
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार आपका दीदी 🙏🏼💐😊
हटाएंवाह दीदी
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया डियर 💐😊
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