इश्क़ ©प्रशान्त

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?

ख़ुदा है , बंदग़ी है, या ख़ता है ll


तकल्लुफ़ से मुख़ातिब जो नहीं है,

ज़माने से अलग दुनिया कहीं है l

गुमाँ है इश्क़ या कोई हक़ीक़त,

अधूरी या मुकम्मल है मुहब्बत l

कोई माँ-बाप को दिल में बसाए,

कोई औलाद पे जाँ तक लुटाए l

बहन का हाथ थामे ज़िंदगी भर,

कलाई से बँधी राखी कहीं पर l

सुख़न ने रूह को जैसे छुआ है,

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?


गया बचपन जवानी पास आई,

फ़िजाओं की रवानी पास आई l

नज़ारे देखते जब आह निकली ?

उमड़ते बादलों के बीच बिजली l

मुसलसल करवटों में शब गुज़ारे,

सुहाने ख़्वाब, जिनमें चांद-तारे l

सनम का दिल लुभाती आज़माइश ,

मुहब्बत के लिए होती नुमाइश l

निग़ाहें मिल रहीं , दिल खो गया है l

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?


अभी तक इश्क़ अच्छा लग रहा था,

सुहाना और सच्चा लग रहा था l

मगर अब दर्द क्यूँ होने लगा है ?

मुहब्बत में मज़ा खोने लगा है l

जुदाई अब सहन होती नहीं है,

रहाइश एक पल की भी नहीं है l

दुआओं में सनम की ख़्वाहिशें हैं ,

मगर मजबूरियों की आतिशें हैं ll

ख़याल-ए-हमसफ़र मुश्किल हुआ है ,

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?


वफ़ा-ए-यार पाकर मुस्कुराए ,

हुआ ग़र बेवफ़ा आंसू बहाए l

मिले या छोड़ जाए रास्ते में , 

जुदा लम्हात दो, दोनों नशे‌ में l

मुहब्बत की सही मंजिल कहाँ है ?

ख़ुशी महबूब की पहले जहाँ है l

बने ग़र हमसफ़र तो ज़िंदगानी ,

जुदा हो जाए तो कोई कहानी l

सनम बस ख़ुश रहे , इतनी दुआ है ,

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?


सुकून-ए-दिल मुहब्बत से अगर है,

दिलों में हाय! नफरत क्यूँ मगर है ?

बदलते वक़्त में बदले नहीं जो ,

भले हो‌ ख़ाक पर पिघले नहीं जो l

शमा से रोज़ परवाना जलेगा ,

गुल-ए-उलफ़त तो रोज़ाना खिलेगा l

वही रिश्ता बचेगा इश्क़ जिसमें ,

ज़वानी में, बुढ़ापे , बचपने में l

मुहब्बत से कहो, कैसा लिखा है ,

मैं अक़्सर सोचता हूँ,  इश्क़ क्या है ?


©प्रशान्त

टिप्पणियाँ

  1. बेहतरीन नज़्म हुई है भाई जी।

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  2. हमेशा की तरह फिर से शानदार...🙏 साधुवाद प्रशांत जी...💐💐

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  3. बेहद खूबसूरत नज़्म बेटा ❤❤💐💐

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