ग़ज़ल ©सरोज गुप्ता
नमन, माँ शारदे
नमन लेखनी
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
मुझे वो खूबसूरत सा, फ़साना याद आता है ।
मिरी ख़ातिर तुम्हारा गुनगुनाना याद आता है ।।
वो मुझसे प्यार का इज़हार, करने के इरादे से ।
मिरे घर का तेरा चक्कर लगाना याद आता है ।।
दिलाई थी कभी चूड़ी जो तुमने लाल रंगों की ।
खुशी से चूड़ियों का, खनखनाना याद आता है ।।
खुले गेसूँ से मेरे खेलना औ उंगलियाँ करना ।
उन्हीं गेसूँ में तेरा जग भुलाना याद आता है ।।
महकते से ख़तों में इक, खुमारी साथ रहती थी ।
ख़तों को वो क़िताबों में, छुपाना याद आता है ।।
कभी रूठे अगर तुमसे, हमारी दिल्लगी थी वो ।
मनाना वो तेरा, अपना सताना याद आता है ।।
न भूली हूँ न भूलूँगी, वो वादे, वो मुलाकातें ।
मुझे मंज़र जवानी का, सुहाना याद आता है ।।
©सरोज गुप्ता
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल मैम🙏🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार गुंजित 🙏💐❤
हटाएंबेहतरीन रूमानी गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डियर 🙏💐
हटाएंउम्दा ग़ज़ल 👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बेटा 🙏💐
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