गीत- कदम ©परमानन्द भट्ट
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
आगे बढ़ना हो तो पहले कदम बढ़ाने पड़ते हैं,
संकल्पों के पर्वत अपने शीश उठाने पड़ते हैं।
धूप छाँव की आँख मिचोली,
आँसू, आहें, हँसी-ठिठोली,
जिसको हम सब सुख कहते हैं,
सच में वह दुख का हमजोली,
सुख के पथ पर पीड़ाओं के कई ठिकाने पड़ते हैं,
आगे बढ़ना हो तो पहले कदम बढ़ाने पड़ते हैं।
भटक रहा मन का मछुआरा,
जर्जर नैया दूर किनारा,
गीत अधूरा रहता सबका,
कहता सांसों का इकतारा,
कसकर मन की इस वीणा के तार बजाने पड़ते हैं,
आगे बढ़ना हो तो पहले कदम बढ़ाने पड़ते हैं।
आँखों में आकाश सजाकर,
मन में नव विश्वास सजाकर,
और भुलाकर कल की पीड़ा,
आँगन अपने आज सजाकर,
नैन नगर में जाने कितने अश्क छुपाने पड़ते हैं,
आगे बढ़ना हो तो पहले कदम बढ़ाने पड़ते हैं।
बीत गई अब बात गई वो,
भूलो, काली रात गई वो,
चाँद गगन में हँसकर कहता,
तारों की बारात, गई वो,
कुछ लम्हे ऐसे होते हैं जो बिसराने पड़ते हैं,
आगे बढ़ना हो तो पहले कदम बढ़ाने पड़ते हैं।
©परमानन्द भट्ट
अत्यंत प्रभावशाली एवं प्रेरक गीत ।🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दिप्ति जी
हटाएंBahut sundar geet sirji🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार तुषार जी
हटाएंसुंदर, प्रेरित करता गीत🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार गुंजित जी
हटाएंअहो, अत्यंत सुंदर तथा प्रेरणादाई सृजन❣️✨🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अंशुमान जी
हटाएंअत्यंत सुंदर प्रेरणादायक गीत सर जी🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार संप्रिति जी
हटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं प्रेरणादायी गीत सृजन सर जी 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गीत सृजन सर जी
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