ग़ज़ल © संजीव शुक्ला
अक्स दिखलाते थे जब किरदार दिखलाने लगे l
आइने भी सरफिरे .... ..तब से नजर आने लगे l
देख कर इन आईनों की यूं बदलतीं फितरतें....
लोग इनके सामने जाने से .....कतराने लगे l
इसलिए शाइर की बातों पर यकीं आता नहीं ..
देखिए दिन में सितारे ....आप गिनवाने लगे l
हम सुनाना चाहते थे हाल-ए-दिल अपना मगर..
आप फिर अपने........ पुराने मर्सिये गाने लगे l
और रिश्ते के लिए इससे ज़ियादा क्या करें....
हम अना पीने लगे हैं...और गम खाने लगे l
छोड़ जाते साथ गर...... नाराज़गी ही थी हुज़ूर...
आप तो अब दिल जहन भी छोड़ कर जाने लगे l
रिक्त अब खामोशियों से भी जमाने को गिला..
हिल गए गर लब जरा अल्फाज भी ताने लगे
© संजीव शुक्ला
बेहतरीन ग़ज़ल सरजी🙏🙏👌
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब, बाकमाल ग़ज़ल हुई है सर🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बेबाक़ गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंहरेक शेर लाजवाब 💐🙏🏼
बेहद खूबसूरत और शानदार गज़ल भाई 🙏🌺
जवाब देंहटाएंहर शेर जबरदस्त 🙏🌺