ग़ज़ल © संजीव शुक्ला

 अक्स दिखलाते थे जब किरदार दिखलाने लगे l

आइने भी सरफिरे .... ..तब से नजर आने लगे l 


देख कर इन आईनों की यूं बदलतीं फितरतें.... 

लोग इनके सामने जाने से .....कतराने लगे l


इसलिए शाइर की बातों पर यकीं आता नहीं ..

देखिए दिन में सितारे ....आप गिनवाने लगे l


हम सुनाना चाहते थे हाल-ए-दिल अपना मगर.. 

आप फिर अपने........ पुराने मर्सिये गाने लगे l


और रिश्ते के लिए इससे ज़ियादा क्या करें....

हम अना पीने लगे हैं...और गम खाने लगे l 


छोड़ जाते साथ गर...... नाराज़गी ही थी हुज़ूर...

आप तो अब दिल जहन भी छोड़ कर जाने लगे l 


रिक्त अब खामोशियों से भी जमाने को गिला..

हिल गए गर लब जरा अल्फाज भी ताने लगे 

© संजीव शुक्ला

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