लघुकथा - भूख ©सौम्या शर्मा
नमन, मां शारदे
नमन, लेखनी
सुबह की चाय के साथ लाॅन में बैठे हुए सिन्हा जी अपने कुत्तों, चार्ली और शैडो को रोटियां डाल ही रहे थे कि तभी मेनगेट पर एक आर्त स्वर सुनाई दिया l "बाबूजी कुछ खाने को दे दीजिए!" सिन्हा जी के हाथ में रोटियों के टुकड़े देखकर अनायास ही उस भिखारी की आंखों में चमक सी आ गई l "पर यह रोटियां तो कुत्तों के लिए हैं!" सिन्हा जी ने लगभग टालते हुए कहा l कुछ क्षण को मौन पसर गया, मानों उस भिखारी ने स्वयं से ही मौन संवाद किया हो, "काश! मैं भी कुत्ता होता!" "बाबूजी कुछ तो दे दो... दो दिन से कुछ भी नहीं मिला !" उसकी आंखों से डबडबा कर गिरने को आतुर अश्रु अब धैर्य की हर सीमा को लांघ, बहने को आतुर थे l इसी बीच अचानक न जाने कब भूख के निरक्षर मनोविज्ञान ने उसे उदर पूर्ति का उपाय सुझाया और अकस्मात ही वह घुटने टेककर जमीन पर कुत्तों की भांति ही बैठ गया l "वो बाबू जी! अब तो मैं भी कुत्ता बन गया! अब तो रोटी देंगे ना?" सिन्हा जी निःशब्द और अवाक खड़े थे l पता नहीं यह भूख की जीत थी या मनुष्यता की हार!
सोचिएगा अवश्य!
©सौम्या शर्मा
अत्यंत भावपूर्ण लघुकथा। हृदय की गहराइयों को छूती हुई
जवाब देंहटाएंअत्यंत मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील लघुकथा 💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक लघुकथा बेटा 👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण लघु कथा 🙏🙏
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