पञ्चचामर छंद - महादेव ©रानी श्री

नमन, माँ शारदे 

नमन, लेखनी  

छंद - पञ्च चामर 

चरण - 4 (दो दो चरण समतुकांत)

वर्ण - 16

मात्रा - 24

जगण रगण जगण रगण जगण गुरु



महेश्वरं शिवं भवः शिवा पतिं कृपानिधिं,

जटाधरं कठोर भैरवं प्रजापतिं विधिं।

गिरीश वीरभद्र भर्ग सोम चारुविक्रमः,

दिगंबरं हविं अनीश्वरं अजः नमो नमः।


सदाशिवं भुजंगभूषणं च नीललोहितं,

मृडं हरिं हरं अनंत सः वृषांक मोहितं।

सहस्त्र पाद शाश्वतं त्रिकाल सर्व तारकं,

सदा शिवं कपालि श्री महामुनिं  त्रियंबकं।


गणादि नाथ व्योमकेश भर्ग देव अव्ययं,

अनादि आदि शुद्धविग्रहं विभा भजं वयं।

नमामि वैद्यनाथ मल्लिकार्जुनं त्रिलोचनं,

भजामि विश्वनाथ सोमनाथ पांशुचंदनं।


उमेश कालकंठ कल्पवृक्ष कालभैरवं,

अमोघ अंबरीश पिंगलाक्ष शेखरं भवं। 

कलाधरं पुरंदरं प्रभाकरं दिगंबरं,

कपालपाणि एकलिंग भूतनाथ ईश्वरं। 


अतीव सुंदरं दृगं, ललाट चक्षु शोभितं,

सुनासिका प्रकाशमान भांति चंद्र लोभितं।

कपोल शोभनं शिवस्य ओष्ठ भांति पाटलं,

समान दंत दाड़िमं कपाल भांति उत्पलं।


ललाट भस्म साज संग कंठ रूद्र भावनी,

त्रिशूल हस्त वस्त्र व्याघ्र छाल पाद पावनी ।

नदीश्वरी जटा सुसज्जितं शशांक मस्तके,

शिलादनंदनं सदा शिवस्य भक्त मानके।


महेश्वरस्य रोम रोम अस्ति सुंदरं सदा,

शरीर कांति भांति सूर्य दीप्यमान सर्वदा।

अकाट्य माहुरं शिवस्य कंठ मध्य स्थितं,

सदैव शांत चित्त तस्य पुष्प भांति स्मितं।


गणेश कार्तिकेय पार्वती विराजितं हियं,

महेश पर्वते गृहं च आदिदेव मम प्रियं।

महा विनाश काल कूट धारकं समन्वितं,

नमामि इंद्र भूषणं कृपाल रूप अन्वितं।


सदैव काम क्रोध लोभ मोह अर्थ पूर्व सः,

सदा विराजमान अष्टमूर्ति अद्य, ह्यः च श्वः।

समस्त लोकपाल सः पिनाकिनं महाबलं,

विराजते धरा, समीर, अग्नि, अंबरे, जलं।


धरा धरेंद्र दिव्य रूपणे शरीर धारणं ,

कृपादि तस्य सर्वदा समस्त लोक तारणं।

शिवस्य क्रोध भूतले प्रचंड रूप तांडवं,

अहं शिवो शिवो अहं नमो नमो नमो शिवं।

©रानी श्री

टिप्पणियाँ

  1. स्तुत्य, वंदनीय पञ्चचामर छंद की शुभकामनाएं। जय महाकाल।

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  2. एकदम अद्भुत रचना है 🙏🙏
    जय भोलेनाथ🙏🙏

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  3. अद्भुत अद्वितीय भक्ति पूर्ण स्तुति बेटा 💐💐❤❤ जय महाकाल 🙏🙏💐💐

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  4. अहो, अत्यंत सुंदर पञ्च चामर छंद, हर हर महादेव ❣️✨🙏

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  5. बहुत सुंदर रचना🙏
    हर हर महादेव!

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  6. अत्यंत उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण छंद बद्ध स्तुति, नमन।💐

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