कहानी- "जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी" ©शैव्या मिश्रा

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी



"जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी,

अभी तो यहीं था किधर गया जी" निशा ने अपने अलिंगन में बंधे अविनाश के कान में गुनगुनाया। अविनाश ने धीरे से उसके माथे को चूम लिया। 

“अवु आज गाना पूरा नहीं करोगे क्या?“ अचानक अविनाश को ख़ुद से अलग करते हूए निशा ने गहरी आवाज़ में पूछा?  

"किसी की आदाओं पे मर गया जी, बड़ी बड़ी अंखियों से डर गया जी।" निशा ने हँसते हुए कहा तो अविनाश अचकचा-सा गया। उसने जब निशा को देखा तो उसकी चीख निकल गई और भागते हुए कमरे से बाहर आया, पीछे से उसके कानों में निशा के हँसने की डरावनी आवाज़ आती रही।

कमरे से बाहर आकर भी वो चीखा, "ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा नहीं हो सकता!" उसकी आवाज़ सुन कर उसके घर वाले भी दौड़कर बाहर आ गये! 

शादी का घर था। घर रिश्तादारों से भरा पड़ा था, आज ही निशा और अविनाश की शादी हुई थी। कुछ देर पहले ही विवाहोपरान्त होने वाली सारी रस्में निपटा कर दुल्हन को कमरे में बिठाया गया था। अविनाश भी आज के लिए अति उत्साहित था! हो भी क्यों ना, निशा बिलकुल परियों के जैसी ख़ूबसूरत थी, उसका दूध में केसर-सा घुला गोरा रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, सुतवाँ नाक, गुलाबी होंठ किसी को भी एक पल में सहज आकर्षित कर लेते थे। ऐसी खूबसूरत लड़की, वो भी शहर के जाने माने रईस की बेटी, यदि अविनाश जैसे मध्यमवर्गीय घर के लड़के की पत्नी बन जाए तो कोई क्यों ना खुश होगा। घर में भी ऐसी सुंदर बहू पा कर सभी बहुत खुश थे।

परंतु अविनाश की ये दशा देख कर सभी की ख़ुशियाँ काफ़ूर हो गई थी! "क्या हुआ बेटा?" अविनाश की माँ ने घबराते हुए पूछा!

"माँ वो निशा…..उसकी आँखें नीली….. वो… वो निशा नहीं है…." अविनाश ने घबराते हुए, अटक-अटक कर बताया। उसकी आँखो में दहशत भरी थी ।

"क्या बक रहा है, निशा नहीं है तो और कौन है?" उसकी माँ ने लगभग डपटते हूए पूछा। 

"अरे साले साहब ख़ुशी में ज़्यादा पी ली है क्या?" अविनाश के जीजा जी ने उसके कानों में फुसफुसा कर पूछा, फिर बिना जवाब का इन्तज़ार किए उसे घसीट कर कमरे में ले गए, "चलो दिखाओ कौन है कमरे में"। 

अविनाश ने ना ना करते हुए सबके साथ कमरे में प्रवेश किया तो निशा सकुचाई सी खड़ी थी! अविनाश को देखते ही बोली, "क्या हो गया आपको? ऐसे चीख कर क्यों भागे?" 

सब ने अविनाश की ओर देखा, निशा बिलकुल सामान्य दिख रही थी, उसकी मासूम काली आँखों में केवल घबराहट थी। "लगता है तू ज़्यादा थक गया है", उसके पिता ने गंभीर स्वर में कहा, "आराम करो, चलो सब लोग बाहर इसको सोने दो!" रामप्रसाद जी ने कहा तो सब चुप चाप बाहर निकल गए।


कमरे में केवल अब निशा और अविनाश थे। अविनाश अभी भी ये मानने को तैयार नहीं हुआ की जो भी हुआ वो उसका वहम था। निशा उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ कर उसको बिस्तर पर बिठाया, फिर पानी का ग्लास बढ़ाते हुए बोली, "प्लीज रिलैक्स, और बताओ क्या हुआ है?"

निशा उसके बगल में बैठ गई! अविनाश एक साँस में पूरा पानी गटक गया, अब उसकी साँसें कुछ शांत हो रही थी। उसने निशा को बताया उसने क्या देखा , निशा सिर झुकाए उसका हाथ अपने हाथ में ले कर उसकी बात सुन रही थी!

"मेरा विश्वास करो निशा तुम्हारी आँखें नीली थी और तुम्हारी आवाज……" 

"मैंने कब कहा कि तुम झूठ बोल रहे, मैंने तो हमेशा तुम पे अंधा विश्वास किया था, अवु, विश्वास तो तुमने तोड़ा था" कह कर निशा ने अपनी पलकें उठाईं।

"निशा..." अविनाश फिर चीखा!

"निशा नहीं दिव्या" निशा ने आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए कहा! 

"दिव्या! कैसे तुम तो… तुम तो… मर…."

"नहीं अविनाश मैं मरी नहीं तुमने मुझे मार दिया था! तुम्हारे विश्वासघात ने मेरी ज़िंदगी मुझसे छीनी और मैं तुमसे सब कुछ छीन लूँगी!"

"मुझे माफ़ कर दो दिव्या, मैं तुमसे प्यार करता …."


"प्यार करते थे तो मेरा इस्तेमाल कर के मुझे छोड़ क्यों दिया, मैं इंतज़ार करती रहीं और तुमने अपने बॉस की बेटी से शादी कर ली?"


"मैं.. मैं लालच में पड़ गया था दिव्या, वो सर ने अपनी इकलौती बेटी से शादी की बात की तो…मुझे लगा ये वो मौक़ा है जो…मुझे बहुत आगे ले जाएगा… पर मुझे, मुझे सच में नहीं पता था, कि तुम तुम ऐसे अपनी जान दे दोगी! मैं निशा से प्यार नहीं करता……..मैं तो तुमसे….."

"हाहाहा तुम इतने ख़ुदगर्ज़ हो। मेरी कब्र की नींव पर अपने ख़्वाबों की इमारत बनाना चाहते थे ना…..मगर मैं तुमको ज़िंदगी दे कर तुम्हारी सारी ख़ुशियाँ छीन लूँगी!"


"मुझे माफ़ कर दो दिव्या, मुझे माफ़ कर दो"

कहते-कहते अविनाश बेहोश हो गया!

उसे होश आया तो उसने ख़ुद को अस्पाताल में पाया, उसको सच जान के निशा उसे छोड़कर जा चुकी थी, उसका परिवार उससे मुँह मोड़ चुका था।


धीरे-धीरे अविनाश अवसाद का शिकार हो गया, उसने अपने पूरे घर में नीली लाइटें लगा ली थीं, और उसे बस वो वक़्त याद है, जब वो दिव्या, उसकी कॉलेज की प्रेयसी, जिसको उसने मन भरने पर छोड़ दिया था, उसको अपने प्यार के जाल में फ़साने के लिए गाता था,

जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी,

अभी अभी यहीं था किधर गया जी,

किसी की अदाओं पे मर गया जी,

बड़ी-बड़ी अँखियों से डर गया जी……

©शैव्या मिश्रा

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