नज़्म- वहशी दरिंदा © सूर्यम् मिश्रा

नमन, माँ शारदे

नमन, लेखनी



देख इक वहशी दरिंदा, 

भीड़ मुर्दा हो गयी थी।


एक वो वहशी दरिंदा,

खा गया इक फूल को जो।

नोच कर कलियाँ वो सारी,

रौंद डाला पैर से सब।।


चीखते उस फूल का पर,

दर्द कम तो हो ना पाया।

लाश उसकी जा रही थी,

फूल के नज़दीक से तब।।


फूल अब वो पूछता है,

क्या थी उसकी गलतियाँ तब।

मालियों से पूँछता वो,

क्या कहीं तुम मर गए थे? 


पर वो माली कह रहा है, 

यार बगिया सो गयी थी।

देख इक वहशी दरिंदा,

भीड़ मुर्दा हो गयी थी।।


आदमी जो था वहाँ पर,

था लहू जिसका वो गंदा,

खून बहता देख करके, 

वो बहुत खुश हो रहा था।


पर मेरा है प्रश्न उनसे, 

पास से जो जा रहे थे।

और भारी प्रश्न उससे, 

जिसने उस मंजर को पूरा 

देख कर, देखा खुशी से।


ना जगा पौरुष भी उसका,

फाड़ कर रख दे उसे वो।

बाद में चाहे कि वो फ़िर,

झूल फाँसी पर ही जाए।


हाँ मगर अब याद आया,

सब के सब मुर्दे ही थे ना।

लाश थे सब जा रहे थे,

क्यूँकि उनकी कुछ नहीं थी,

जो कि नोची जा रही थी।


ना ही थी उनकी बहन वो,

ना ही बेटी और पत्नी भी नहीं थी।

थी मगर ऐसी कड़ी वो,

चेन की उस जा रही जो, 

उनकी बहनों बेटियों से।


खैर छोड़ो और लिख दो,

लाइनें कुछ मौत पे उस।

हाँ मगर दो चार वो सब और रख लो,

हाँ वही हथियार सबका, 

मोमबत्ती, मोमबत्ती। 

मोमबत्ती, मोमबत्ती।


दो मिनट फ़िर मौन होकर,

तुम चले जाना घरों को।

हाँ वही जो कर सकोगे,

और फ़िर महसूस करना।

उस ही बच्ची के स्वरों में, 

मर्द सी लक्ष्मी, चेनम्मा और पन्ना

इंदिरा, और कल्पना वो, और सुषमा।

और उनके बहुतों के सँग,

पूरी दुनिया रो गयी थी।

देख इक वहशी दरिंदा, 

भीड़ मुर्दा हो गयी थी।।


© सूर्यम् मिश्रा


टिप्पणियाँ

  1. विनम्र आभार निवेदित है, लेखनी परिवार 🙏

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  2. मन को झकझोरती हुई अत्यंत संवेदनशील एवं प्रभावशाली नज़्म।💐

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  3. बेहतरीन, अत्यंत प्रभावशाली नज़्म ✨❣️

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  4. अत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक सृजन सूर्यम बेटा 👌👌❤❤❤

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  5. भावों से लबरेज़ , अत्यंत मार्मिक सृजन

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  6. संवेदनाशील रचना भाई

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  7. वाह , बहुत खूब बधाई सूर्यम

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