नमन, माँ शारदे नमन, लेखनी नेह उर में ले ,प्रबल विश्वास मन में, ले मिलन का लक्ष्य विह्वल प्राण-प्रण में l दर्श की अभिलाष ले युग तारिका में, बिंब हैं प्रेमाश्रु बूंदों के झरण में l हाथ ले वरमाल प्रत्याशा नयन में, हा,! कठिन अतिकाल प्रियतम के वरण में l मेरु होती पीर व्याकुल प्रियतमा की, दृष्टि फेरो प्राण आश्रय दो शरण में l युग बिताए शोध में वत्सर गुजारे, अब कदाचित आयु है अंतिम चरण में l हो चुकी प्रियवर प्रतीक्षा की तितिक्षा, तीव्र होती व्यग्रता प्रत्येक क्षण में l व्याप्त हो सर्वत्र चेतन जीव जड़ में, वेद वाणी से सुना मैंने श्रवण में l पुष्प पल्लव तरु तने के मूल में तुम, कंद फल में कंटकों में छाल तृण में l तुम दिशा,नक्षत्र,धरती में गगन में , हो समाहित सृष्टि के आधार कण में l वेग सरिता का ,चपलता निर्झरों की, अग्नि ज्वाला ,वायु, जल ,आकाश मृण में l तुम पराभव हो तुम्ही उद्भव जगत का , सृष्टि सामंजस्य गृह की गति ,भ्रमण में l ग्रीष्म,पावस शीत ऋतु का चक्र तुमसे, तुम विगत हो,और आगत आवरण में l तुम शिराओं में रुधिर बन कर प्रवाहित, स्वास, तन, स्पंद जीवन में मरण में l ज्ञान हो तुम मोक्ष हो उद्धार तुमस
सादर आभार, नमन लेखनी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर।
हटाएंवाह खूबसूरत गज़ल बेटा
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम।
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल गुंजित💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार दीदी।
हटाएंवाह्हहह!!!!! बेहतरीन गज़ल 💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम।
हटाएंवाहहहह वाहहहह उम्दा ग़ज़ल। 🙏🍃
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल भाई👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई🙏
हटाएं