चलना होगा ©शिवाँगी सहर
सोच कर घर से जब चला होगा,
जानता ही नहीं कि क्या होगा।
हो हक़ीक़त से तुम नहीं वाकिफ़,
ये ग़लत है कि सब पता होगा।
जिसका सच कटघरे में आया है,
झूठ शायद कभी कहा होगा।
यूँ बहुत सख़्त था वो आदम पर,
भावनाओं में बह गया होगा।
दर्द में भी जो मुस्कराता है,
कितना अंदर से वो भरा होगा।
मेरा लिक्खा हुआ पढ़ा उसने,
ये गलत आपने सुना होगा।
आँसुओ का असर नहीं जिस पर,
शख्श पत्थर का फ़िर बना होगा।
मील पैदल चला सदा सुनकर,
कैसा दिल को भरम हुआ होगा।
चाह कर भी न माफ़ कर पाए,
उम्र भर एक यही गिला होगा।
©शिवाँगी "सहर"
बेहतरीन ग़ज़ल 💐💐
जवाब देंहटाएंAbhar bhaiya 💐💐
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना👌👌
जवाब देंहटाएंShukriya ... 🤗
हटाएंकमाल की ग़ज़ल🙏👏
जवाब देंहटाएंBahut shukriya ... 💐💞
हटाएंबेहतरीन जज़्बाती गज़ल ❣💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंAbhar didi ... 🥰🥰🥰
हटाएंMehnat karti raho bitiya. Do chaar acchhi ghazal likh hi logi budhape tak
जवाब देंहटाएंजी आदरणीय गुरु जी ... 😂
हटाएंवाह्ह्ह वाह्ह्ह्ह, अद्भुत मैम 👏
जवाब देंहटाएंआभार आपका 💐💐
हटाएंवाह बेहद उम्दा गज़ल 👌👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार दीदी ... ❤️❤️
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल... वाह्हहहहहहहह 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ... 💐💐☺️☺️
हटाएंबेहद खूबसूरत मैम
जवाब देंहटाएंआभार 💐😊🙏
हटाएंशुक्रिया 😊🙏
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