चलना होगा ©शिवाँगी सहर

 सोच  कर घर  से  जब चला  होगा,

जानता   ही  नहीं  कि  क्या  होगा।


हो हक़ीक़त से  तुम  नहीं  वाकिफ़,

ये  ग़लत  है  कि  सब  पता  होगा।


जिसका  सच कटघरे  में  आया है,

झूठ  शायद   कभी   कहा   होगा।


यूँ  बहुत  सख़्त था वो  आदम पर,

भावनाओं   में   बह   गया   होगा।


दर्द   में   भी  जो   मुस्कराता    है,

कितना अंदर  से  वो  भरा  होगा।


मेरा   लिक्खा   हुआ  पढ़ा   उसने,

ये   गलत    आपने   सुना   होगा।


आँसुओ का  असर नहीं जिस पर,

शख्श  पत्थर का फ़िर बना होगा।


मील  पैदल  चला   सदा  सुनकर,

कैसा  दिल को  भरम हुआ होगा।


चाह  कर भी  न  माफ़ कर  पाए,

उम्र  भर  एक  यही  गिला  होगा।


   ©शिवाँगी "सहर"

टिप्पणियाँ

  1. Mehnat karti raho bitiya. Do chaar acchhi ghazal likh hi logi budhape tak

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  2. वाह्ह्ह वाह्ह्ह्ह, अद्भुत मैम 👏

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  3. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल... वाह्हहहहहहहह 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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