बालिका दिवस ©परमानन्द भट्ट
तुम बिन यह अंगनाई बेटी
गुमसुम सी पथराई बेटी
रातों में रोया करती है
याद तुझे कर माई बेटी
बाबा भी गुमसुम से सोते
दिन भर ओढ़ रजाई बेटी
तुम बिन भूल गया है छोटू
झगड़ा और लडा़ई बेटी
इस घर के कोने कोने में
तेरी याद समाई बेटी
गुस्सा दादी को आया था
जिस दिन माँ ने जाई बेटी
दो दो आंगन महकाने को
होती हाय पराई बेटी
सोच समझ कर मिलना जुलना
यह दुनिया हरजाई बेटी
तेरी भी है ब्याही बेटी
फिर क्यूँ बोल सताई बेटी
संग संग अपने साजन के अब
रहना बन परछाईं बेटी
कब आयेगी पूछ रहे हैं
नानी दादी ताई बेटी
मोबाइल पर मां खांसी तो
बेहद ही घबराई बेटी
यादें तेरी रोज' परम 'के
मन आंगन में छाई बेटी
©परमानन्द भट्ट
बेहद भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावपूर्ण गजल 🙏🏻
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर Sirji🙏👌🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण सृजन सर 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण बहुत सुंदर सृजन 🙏🏻🙏🏻
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