तुम मुझको कितना तोड़ोगे? ©अंशुमान मिश्र
की क्षुधा पूर्ति मेरी सदैव,
बाधा ने ठोकर खिला मुझे!
नित क्रूर भाग्य से छला गया,
विषकुंभ पयोमुख मिला मुझे!
पर मैंने की हुंकार पुनः!
रवि ने चीरा अँधियार पुनः!
मैं सबका प्रत्युत्तर दूँगा,
कब तक विपदा-शर छोड़ोगे?
तुम मुझको कितना तोड़ोगे?
कस दो थोड़ी और बेड़ियाँ,
चाहे और कष्ट दो मुझको,
चाहे और बेध दो तन-मन,
या कर पूर्ण नष्ट दो मुझको,
मैं फिर से उठ खड़ा रहूँगा!
निज प्रश्नों पर अड़ा रहूंँगा!
मेरे प्रश्नों से छिपकर तुम,
कब तक अपना मुख मोड़ोगे?
तुम मुझको कितना तोड़ोगे?
तुम मुझको कितना तोड़ोगे?
-©अंशुमान मिश्र
बहुत सुन्दरभाव और शब्द संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद मैम ✨🙏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार दीदी ��✨��
हटाएंअद्भुत भाई जी अद्भुत👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया भाई जी 💙✨🙏
हटाएंअद्भुत भावपूर्ण सृजन 👏👏👏💐💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण कविता 🙏👏❤️
जवाब देंहटाएंबहुत आभार 💙🙏
हटाएंBahut khoob Bhai👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई जी ✨🙏
हटाएंअद्भुत भाई🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार भाई 💙🙏
हटाएंआभार गुरुवर 💙🙏
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