याद आने लगे ©दीप्ति सिंह
212 212 212 212
मुतदारिक मुसम्मन सालिम
इस क़दर वो मुझे याद आने लगे
मेरा सब्र-ओ-सुकूँ आज़माने लगे
वो भले दूर हैं पास एहसास हैं
उनके एहसास हमको डुबाने लगे
वो समझते हैं ख़ामोशियाँ भी मेरी
जो समझने में सबको ज़माने लगे
क़ैफ़ियत अब हमारी परेशान है
ख़ैरियत आप जबसे छुपाने लगे
देखिए तो सही क्या मेरा हाल है
आपकी याद में सब भुलाने लगे
आपसे मिल रहा दर्द भी ख़ास है
दर्द से दिल की महफ़िल सजाने लगे
आपसे है मुकम्मल 'दीया' आपकी
आपके बिन हक़ीक़त फ़साने लगे
© दीप्ति सिंह 'दीया'
बेहद खूबसूरत और रूमानी गज़ल 👏👏👏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार एवं सप्रेम अभिवादन आपका 💐💐💐💐🙏🏼😊
हटाएंBahut sundar gazal ma'am 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका तुषार 💐💐💐💐😊
हटाएंबेहद खूबसूरत गजल मैम...👏👌
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया आपका सूर्यम 💐💐💐😊
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल ❤️👌👌👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻❤️
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया एवं सप्रेम अभिवादन आपका 💕😊💐💐💐
हटाएंबहुत बेहतरीन🙏
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया एवं सस्नेहाभिवादन आपका गुंजित 😊💐💐💐💐
हटाएंखूबसूरत ग़ज़ल 🙏
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार आपका 🙏🏼😊💐💐💐💐💐
हटाएंवाह्हहहहहहहहहहहह बेहतरीन ग़ज़ल मैम 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार एवं सप्रेम अभिवादन आपका 😊💐💐💐💐💐💐
हटाएंउम्दा ग़ज़ल 👌👌🙏
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार एवं सप्रेम अभिवादन आपका 😊🙏🏼💐💐💐💐💐
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