ग़ज़ल© संजय मिश्रा
मेरा इश्क है मेरी ज़िंदगी ,इसको मिटाऐं किस तरह l
तेरी ज़ुस्तज़ू लिए जी रहे, तुझे भूल जाऐं किस तरह ।
यूँ ही बीत जाए दिन ब दिन, तेरे नाम हमने उम्र की..
इस बेहिसाब सी ज़िन्दगी,का हिसाब पाएँ किस तरह।
की गुज़र रही है हदों से जो , ये अज़ब तङप मेरे दिल की है...
ये ईनाम हैं जो ये ज़ख्म हैं, की इन्हे छिपायें किस तरह।
तेरे दर पे झुकती रहे यूँ ही, सज़दे में मेरी ज़वाँ नज़र..
तू ख़ुदा है मेरा ख़फ़ा है क्यूँ , की तुझे मनायें किस तरह।
मेरी साँस चलती रहे कभी , तेरी ख़ुशबुएँ भी जुदा न हो...
मेरी धड़कनें तेरे नाम हैं , तुझे लब पे लाएँ किस तरह l
यूँ ही लाख मुझ पे सितम करो, तेरे ज़ुल्म मुझको क़ुबूल हैँ....
मुझे दर्द देना अदा तेरी, न कहूँ अदाएँ किस तरह ।
© संजय मिश्रा
बेहद खूबसूरत गज़ल 💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंआपका और संजीव sir का आभार
हटाएंबेहद उम्दा बेहद खूबसूरत गजल सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ।
हटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत 👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत ही बेहतरीन🙏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंआपका और संजीव sir का धन्यवाद
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल 🌹❤️
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंसुंदर गजल संजू,,👌👍🏻❤️🌹
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंBahut sundar gazal Sirji 🙏
जवाब देंहटाएंआभार प्रकट करता हूँ
हटाएंधन्यवाद
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 👏👏👏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह बेह्तरीन ग़ज़ल.. 💐
जवाब देंहटाएंसब आपकी लेखनी और अनुभव का कमाल है ।
हटाएं👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएं👋👋👋👋👋
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल 👏
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