याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है। नींद नयन से बदली बन उड़, जाती है।। बिना तुम्हारे जीवन का क्या, अर्थ लगे। सुरभित सुमन सुवासित कानन, व्यर्थ लगे।। मधुरिम कलरव विहगों का दुख, देता है। शेष बचीं खुशियों को भी हर, लेता है।। मेरी पीड़ा बोल भला कब , पाती है। याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।। कोकिल तानों से गूँजे जब, अमराई। बहती रहती जब-तब शीतल, पुरवाई।। डाल दिया है अवसादों ने, अब डेरा। मन आँगन में नीरवता का, है घेरा।। गीत विरह के कोई विरहन, गाती है। याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।। प्रेमी जन यह बात सभी से, कह देना। सरल नहीं है मनचाहे को, पा लेना।। मेरे संगी साथी केवल, तारे हैं। वही नयन को लगते अब तो, प्यारे हैं।। विरहानल पी आँख छलक ही, जाती है। याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।। *- -©ऋषभ दिव्येन्द्र*
Adbhut adutye 😍👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति 👏👏👏👏👏👏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंदीदी बहुत खूब प्रस्तुति 👏👏👏🙏
जवाब देंहटाएंकाबिल ए तारीफ 👏👏👏
जवाब देंहटाएंकमाल👌👌
जवाब देंहटाएंवाह जबरदस्त प्रस्तुति 👌👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंफर्श को आसमान बोलें क्या ?
जवाब देंहटाएंहम आपकी ज़ुबान बोलें क्या ??
क्या कहने मैम .... समां बांध दिया आपने .....साधुवाद💐💐💐
सुंदर प्रस्तुति मैम 💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति 👏🏻👏🏻👏🏻❤️❤️👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह्ह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति 💐
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