ग़ज़ल ©प्रशान्त
करूं मैं इजहार-ए-इश्क़ कैसे, दबी तमन्ना उभर न पाए l
जो बात मुझको जला रही है, सनम सुने तो सुलग न जाए ll
हैं इश्क़ के ही मक़ाम सारे, ये दिल्लगी, उंस या अकीदत..
करे इबादत ख़ुदा बनाकर , जुनून-ए-दिलबर क़जा कहाए ll
सराब का जब किया है पीछा, मिला हूँ आकर समंदरों से....
न काम दोनों ही आए मेरे, किसे कहूं तिश्नग़ी बुझाए ??
न झूठ बोले, न सच बताए, न ऐब जाने, न खूबियों को....
ये आइना है शरीफ़ कितना, जिसे नज़र सब ज़हीन आए ll
गुज़ारिशें महफ़िलें सजातीं, तो कौन किसको 'ग़ज़ल' सुनाता l
बने हक़ीक़त हों ख़्वाब जिसके, कही-अनकही वही सुनाए ll
© प्रशान्त
बहुत उम्दा ग़ज़ल🙏👏
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंबेहद गज़ब
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंWaah Sirji 👌👏👏
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंआभार आपका🙏🙏🙏😊😊
हटाएंशानदार गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका😊😊🙏🙏
हटाएंआभार आपका सर 🙏🙏🙏😊😊
जवाब देंहटाएंअहा ❤️
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏🙏💐💐💐
हटाएंबेहतरीन रूमानी गज़ल 👏👏💐
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मैम 🙏🙏💐💐
हटाएंआप सबका बहुत बहुत आभार ❤️❤️❤️🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐😊😊
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏😊😊💐💐
हटाएंKhoobsurat ❣️
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका..,🙏🙏🙏😊😊💐💐💐
हटाएंWaaah
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका 🙏🙏💐💐💐
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