उलझन ©रेखा खन्ना
मोहब्बत और लगाव, दर्द के सिवा कुछ नहीं
दो पल का भी अलगाव, जहर से कम नहीं।
धीमे-धीमे चढ़ रहा, कोई दिल में चुपके से
दिल में एहसासों का साथ, कहर से कम नहीं।
बूंँद बूँद ओस की जैसे मोतियों सी टपक रही
पत्तियों की कोरों पर बूँदे, लहर से कम नहीं।
गीत जो लिखे दिल से उसे गुनगुनाती रही
सुरों को बहने का रस्ता मिल जाए गर, नहर से कम नहीं।
तमन्ना मन में उठते ही उचक कर देखती है हकीकत
एक एक कर दिल में बसती जाए तो, शहर से कम नहीं।
प्रीत को रीत की डोर काटती ही रही सदा
रीत भी प्रीत को माने कभी, बाद-ए-सहर से कम नहीं।
© रेखा खन्ना
दिल तक पहुँचने वाली खूबसूरत रचना 👌👌👌
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका 😊
हटाएं🙌🙌🙌🙌🙌🙏🙏👏👏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 😊
हटाएंBahut Sundar 😍👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 😊
हटाएंबेहद खूबसूरत एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ 👌👌👌👏👏👏
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका
हटाएंवाह 👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 😊
हटाएंबहुत खूब लिखा 👌🏼
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका 😊
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