सैनिक ©अनिता सुधीर
सोच रही शब्दों की सीमा,कैसे लिख दूँ सैनिक आज।
कर्तव्यों की वेदी पर जो,पहने हैं काँटों का ताज।।
वीरों की धरती है भारत,थर थर काँपे इनसे काल।
संकट के जब बादल छाए, रक्षा करते माँ के लाल।।
रात जगी पहरेदारी में, देख रही है सोया देश।
मित्र बना कर बारूदों को,वीर सजाते फिर परिवेश।।
रिपु को धूल चटाना हो या,नागरिकों का रखना ध्यान।
विपदा कैसी भी आ जाए,हँस कर देते हैं बलिदान।।
हिमकण की ओढ़ें चादर या ,तपती बालू का शृंगार।
देश बना जब इनका प्रियतम, नित्य ध्वजा से है मनुहार।।
भू रज मस्तक की शोभा है,शौर्य समर्पण है पहचान।
फौलादी तन मन रख सैनिक ,करते कितने कार्य महान।।
©अनिता सुधीर
हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट👌👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर वीरछन्द 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर आल्हा छंद 👌👌👌
जवाब देंहटाएंजय जवान, वन्देमातरम
जवाब देंहटाएंAdbhut adutye rachna 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसैनिक को समर्पित 👏👏👌👌
बेहतरीन।💐👌✨
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