ग़ज़ल ©सूर्यम मिश्र


मेरा दिल वो दुखाएगी, उसे थी ये ग़लतफहमी।

मेरा सर वो झुकाएगी, उसे थी ये ग़लतफहमी।।


खुदाया यार खरबूजे_हुए हैं हम बिना उसके।

छुआरे सा सुखाएगी__उसे थी ये ग़लतफहमी।।


हमारे कान कौवे से,___हमारी आंख गिद्धों सी।

वो हमसे सब छुपाएगी,उसे थी ये ग़लतफहमी।।


उसे मालूम ना सूर्यम कलम फ़न है तुम्हारा जो।

कहानी वो सुनाएगी,__उसे थी ये गलतफहमी।।


कसम से एक टॉफी भी,_नहीं हमने खरीदी है।

वो हमसे भोज खाएगी,उसे थी ये ग़लतफ़हमी।।

 

                 ©सूर्यम मिश्र

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