याद तुम्हारी ©ऋषभ दिव्येन्द्र



याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।

नींद नयन से बदली बन उड़, जाती है।।


बिना तुम्हारे जीवन का क्या, अर्थ लगे।

सुरभित सुमन सुवासित कानन, व्यर्थ लगे।।

मधुरिम कलरव विहगों का दुख, देता है।

शेष बचीं खुशियों को भी हर, लेता है।।

मेरी पीड़ा बोल भला कब , पाती है।

याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।।


कोकिल तानों से गूँजे जब, अमराई।

बहती रहती जब-तब शीतल, पुरवाई।।

डाल दिया है अवसादों ने, अब डेरा।

मन आँगन में नीरवता का, है घेरा।।

गीत विरह के कोई विरहन, गाती है।

याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।।


प्रेमी जन यह बात सभी से, कह देना।

सरल नहीं है मनचाहे को, पा लेना।।

मेरे संगी साथी केवल, तारे हैं।

वही नयन को लगते अब तो, प्यारे हैं।।

विरहानल पी आँख छलक ही, जाती है।

याद तुम्हारी जब-जब मुझको, आती है।।


*- -©ऋषभ दिव्येन्द्र*

टिप्पणियाँ

  1. अति सुंदर एवं भावपूर्ण सृजन 💐🙏🏼

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  2. मंच का बहुत-बहुत आभार 🤗🙏

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  3. बहुत ही सुन्दर और मन को छू लेने वाली कविता 👏😍

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  4. दिल छू लेने वाली रचना 👌👌

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  5. दिल छू लेने वाली रचना 👌👌

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  6. अत्यंत मनभावन छंदबद्ध गीत🙏

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