ग़ज़ल ©धीरज दवे
नमन, माँ शारदे
नमन लेखनी
इतना मुश्किल भी नहीं बात समझना मेरे दोस्त,
दिल जो घर है तो निगाहें भी है रस्ता मेरे दोस्त।
एक मुद्दत से तिरा नाम नहीं होंठों पे,
कितना आसां है मिरा प्यास से मरना मेरे दोस्त।
रोज़ होते हैं सितम रोज़ दुआ होती है,
रोज़ बनता है मिरे दिल का तमाशा मेरे दोस्त।
लोग तो अब भी मुझे तेरा सनम जानते हैं,
अब भी होता है तिरे नाम से झगड़ा मेरे दोस्त।
मुझको गाना है तरन्नुम में तुझे शाम कि शाम,
तू भी बेचैन मुझे रोज़ ही करना मेरे दोस्त।
राह में मिल भी गए तो न नज़र फेरें हम,
ये भी होता है बिछड़ने का सलीका मेरे दोस्त।
आँख जब टूटते तारों में अटक जाती है,
याद आता है कोई हाथ से छूटा मेरे दोस्त।
©धीरज दवे
बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है✨🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना 👏👏
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल हुई है 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल 💐
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