ग़ज़ल ©सूर्यम मिश्र
मेरा दिल वो दुखाएगी, उसे थी ये ग़लतफहमी।
मेरा सर वो झुकाएगी, उसे थी ये ग़लतफहमी।।
खुदाया यार खरबूजे_हुए हैं हम बिना उसके।
छुआरे सा सुखाएगी__उसे थी ये ग़लतफहमी।।
हमारे कान कौवे से,___हमारी आंख गिद्धों सी।
वो हमसे सब छुपाएगी,उसे थी ये ग़लतफहमी।।
उसे मालूम ना सूर्यम कलम फ़न है तुम्हारा जो।
कहानी वो सुनाएगी,__उसे थी ये गलतफहमी।।
कसम से एक टॉफी भी,_नहीं हमने खरीदी है।
वो हमसे भोज खाएगी,उसे थी ये ग़लतफ़हमी।।
©सूर्यम मिश्र
ुंदर 💐💐💐
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार 😊🙏
हटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल भाई👌
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार, जानदार गज़ल सूर्यम
जवाब देंहटाएंबेहतरीन😄
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल हुई है 😄💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 💐
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