छंद -सवैया ©संजीव शुक्ला
नमन, लेखनी l
तिन नैनन गेह सनेह कहाँ, जिन नैनन नीर बहे न बहे l
नहिं जानत जो जन के मन की,तिन का मन पीर कहे न कहे ll
कबहूँ नहिं हाथ धरे जिन काँधन का तिन संग रहे न रहे l
मझधारन छाँड़ि दए बहियाँ, जिन का तिन बाँह गहे न गहे ll
मन भीगत नाहिं न भीगत जा तन का रस धार बहे न बहे l
जिन के मन पीर न औऱन की,तिन का निज पीर सहे न सहे ll
दुख औऱन के नहिं पीरक भे, तिन का नित मोद लहे न लहे l
निज संतति संपति नारिहि के, हित जानत ते न महे न महे ll
©संजीव शुक्ला
अद्भुत सवैया सर जी 👌👌👏👏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट सवैया🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं सटीक सवैया छंद 💐🙏🏼
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