छंद -सवैया ©संजीव शुक्ला

 नमन, लेखनी l



तिन नैनन गेह सनेह कहाँ, जिन नैनन नीर बहे न बहे l

नहिं जानत जो जन के मन की,तिन का मन पीर कहे न कहे ll

कबहूँ नहिं हाथ धरे जिन काँधन का तिन संग रहे न रहे l

मझधारन छाँड़ि दए बहियाँ, जिन का तिन बाँह गहे न गहे ll


मन भीगत नाहिं न भीगत जा तन का रस धार बहे न बहे l

जिन के मन पीर न औऱन की,तिन का निज पीर सहे न सहे ll

दुख औऱन के नहिं पीरक भे, तिन का नित मोद लहे न लहे l

निज संतति संपति नारिहि के, हित जानत ते न महे न महे ll

©संजीव शुक्ला

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