ग़ज़ल © रेखा खन्ना
दर्द सारी रात कराहता रहा
अश्कों की भेंट, मैं नींद को चढ़ाता रहा।
नीला पड़ा बदन ठंडा होता रहा
रूह को तड़पता देख, मैं मौत को पास बुलाता रहा।
नासाज़ तबियत से दिल बेचैन होता रहा
झूठी तसल्लियों से, मैं दिल को बहलाता रहा।
रिश्तों में ग़लतफहमियांँ बेवजह ही पालता रहा
आस्तीन के सांँप को मैं रोज़ दूध पिलाता रहा।
महक चँदन की थी या रात की रानी महक रही थी
रात भर बीन बजा कर मैं नाग को बुलाता रहा।
दिल सच्चे प्रेम को दर बदर भटकता ढूँढता रहा
रूहानी प्रेम की कहानियांँ, मैं दिल को सुनाता रहा।
इबारत लिखी थी किताब में एक इँसान बनने की
खुदा की बस्ती में, मैं सच्चा इँसान तलाश करवाता रहा।
दिल के एहसास।© रेखा खन्ना
बहुत खूब लिखा मैम❣️
जवाब देंहटाएंबेहद संजीदा एवं गहन 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना मैम 🙏🍃
जवाब देंहटाएंखूब लिखा आपने 👏👏👌👌
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