ग़ज़ल ©प्रशांत 'ग़ज़ल'
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
अगर ज़ज्बात ज़ाहिर हो तो शाइर हो ।
अगर कहने में माहिर हो तो शाइर हो ।
मुहब्बत क्या, सियासत क्या, हुकूमत क्या ?
हक़ीक़त के मुसाफिर हो तो शाइर हो।
जहाँ-भर की ख़बर रखकर अगर फिर भी,
जहाँ से ग़ैरहाज़िर हो तो शाइर हो।
बड़ा शातिर ज़माना है , मिटा देगा,
अगर तुम और शातिर हो तो शाइर हो।
किसी के दर्द की हद तक कभी पहुंचो,
महज़ हर्फ़ों के साहिर हो तो शाइर हो ?
'ग़ज़ल' तुम कह नहीं पाए, नहीं कुछ गम,
अगर औलाद शाइर हो, तो शाइर हो।
©प्रशांत शर्मा 'ग़ज़ल'
क्या कमाल की ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल 💐
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़ल 💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल हुई है 💐
जवाब देंहटाएंआप निसंदेह शाइर है प्रशांत जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल वाह 👏👏👏
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