गज़ल ©सरोज गुप्ता
आज खामोशियाँ कर रहीं गुफ्तगू ।
आ भी जाओ सनम तुम मेरे रूबरू ।।
आपको इल्म हो या न हो जानेमन ।
मेरी उल्फ़त को है आपकी जुस्तज़ू ।।
मैंने मांगा नहीं आपसे कुछ सनम ।
पूरी कर दो मेरी आज ये आरज़ू ।।
आप मशरूफ़ हैं ये हमें है पता ।
ऐसी मसरूफ़ियत अब लगे फ़ालतू ।।
वो हंसी खो गई आपकी जानेजाँ ।
जो लुटाती रही प्यार की मुश्कबू ।।
आँख मेरी टिकी देहरी पर सनम ।
आके रख लो सनम इश़्क की आबरू ।।
©सरोज गुप्ता
सादर आभार लेखनी 🙏🌹
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल maam 👌👌🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏🌹
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙏🌹
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