गुज़री है ©परमानन्द भट्ट
हमारे द्वार से दिलक़श बहार गुज़री है
ख़ुशी के पल हमें देकर उधार गुज़री है
चमन में ख़ून से लथपथ परिंदे चीखते हैं
हवा भी साथ में लेकर कटार गुज़री है
मिली है मात तो घबरा के बैठ मत जाना
हमारे साथ तो यह बार बार गुज़री है
हमारा मौन भी उनको लगा बग़ावत सा
"वो बात उन को बहुत ना- गवार गुज़री है"
मिलेगी खाइयाँ कल देखना यहाँ गहरी
घरों के बीच से ऐसी दरार गुज़री है
महक से भर गयी है आज ये गली यारों
वो थोड़ा वक्त यहाँ गुज़ार गुज़री है
'परम' के नैन से भी तब छलक गये आँसू
ज़मीं से अब़्र में कातर पुकार गुज़री है
©परमानन्द भट्ट
बेहद खूबसूरत गज़ल 👏👏👏🙏🙏🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 💐💐💐🙏🏼
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