ग़ज़ल ©प्रशान्त

 2122 1212 22

बात इतनी समझ न आई है l

दर्द है इश्क़ या दवाई है l


आंख से नींद गुमशुदा सी है, 

आंख जबसे कहीं लड़ाई है l


रात भर करवटें हमारी हैं, 

और सिलवट भरी रज़ाई है l


ज़िक़्र जब भी हुआ गुलाबों का, 

याद उसके लबों की आई है l


जिस्म बेजान था ज़माने से

जान आई तो जान आई है l


दूर रहना शरीफ़ लोगों से, 

ये नज़र देखती बुराई है l


राह की ठोकरें तज़ुर्बा थीं, 

ज़िंदगी अब समझ‌ में आई है l


आज ज़ज़्बात लिख रहा हूं मैं, 

बात सारी सुनी-सुनाई है l


मौत क्या है 'ग़ज़ल' हक़ीक़त में, 

जीस्त की क़ैद से रिहाई है l


© प्रशान्त

टिप्पणियाँ

  1. क्या गजल हो गई लाजवाब👏👏👏💐💐💐💐💐

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    1. बहुत आभार..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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  3. उत्तर
    1. बहुत आभार तुषार जी..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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  4. उत्तर
    1. बहुत आभार माँ..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. बहुत आभार सर जी .... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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  6. बहुत खूबसूरत गजल भैया 👏🙏

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    1. बहुत आभार आपका सूर्यम जी..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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  7. उत्तर
    1. बहुत आभार दीदी.... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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  8. Jaan aayi to jaan aayi hai ... Behad khubsurat gzl ... 💐💐💐

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    1. बहुत आभार..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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    1. बहुत आभार ..... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏😊😊😊😊😊

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