ग़ज़ल ©अंशुमान मिश्र

 सो रही दुनिया, अंधेरे में दिल'ए बेदार लेकर,

ढूंढता हूं मैं तुम्हें यूं,  नेमत'ए दीदार लेकर,


जान कल ही ले गया कातिल निगाहों से कोई था ,

आज फिर से आ गया है इक नया आज़ार लेकर..


या करेगी नाम, या बदनाम होगी शायरी अब,

आ गए जो महफिलों में एक बादा ख्वार लेकर..


जो कभी खुशियां मनाते पत्थरों को देखकर थे,

आज देखो रो रहे हैं, गौहर'ए शहवार  लेकर..


और सबकी क्या कहें, पाकर नहीं खुश ज़िन्दगी जो,

हम  मुसलसल  हंस  रहे हैं  मौत के आसार  लेकर..


एक आधी सी ग़ज़ल इस आस पर आधी रखी है,

लौट कर पूरा  करोगे  तुम, नए  अश'आर  लेकर..


                   -©अंशुमान मिश्र

टिप्पणियाँ

  1. वाह-वाह क्या कहने लाजवाब गज़ल 💐💐💐💐

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  2. बहुत सुंदर ग़ज़ल वाऽऽह 👌👌

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