ग़ज़ल ©अंशुमान मिश्र
सो रही दुनिया, अंधेरे में दिल'ए बेदार लेकर,
ढूंढता हूं मैं तुम्हें यूं, नेमत'ए दीदार लेकर,
जान कल ही ले गया कातिल निगाहों से कोई था ,
आज फिर से आ गया है इक नया आज़ार लेकर..
या करेगी नाम, या बदनाम होगी शायरी अब,
आ गए जो महफिलों में एक बादा ख्वार लेकर..
जो कभी खुशियां मनाते पत्थरों को देखकर थे,
आज देखो रो रहे हैं, गौहर'ए शहवार लेकर..
और सबकी क्या कहें, पाकर नहीं खुश ज़िन्दगी जो,
हम मुसलसल हंस रहे हैं मौत के आसार लेकर..
एक आधी सी ग़ज़ल इस आस पर आधी रखी है,
लौट कर पूरा करोगे तुम, नए अश'आर लेकर..
-©अंशुमान मिश्र
कमाल🔥🔥🔥
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई ❣️
हटाएंज़बरदस्त भैया जी 😍❤
जवाब देंहटाएंआभार भाई
हटाएंBahut sundar bhai👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार भाई जी
हटाएंलाज़वाब 👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआभार सर ✨💙🙏
हटाएंवाह-वाह क्या कहने लाजवाब गज़ल 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया मैम ✨🙏
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल वाऽऽह 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मैम 💙✨🙏
हटाएंवाह्ह्हह्ह्ह्ह 💐💐
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर,✨🙏
हटाएंगजब 🌻
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी ✨🙏
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