चाय पर ©विपिन बहार

 बारिशो में तुम मिली थी चाय पर ।

बादलों में तुम खिली थी चाय पर ।।


वक्त का मानो पता ही ना चला...

बात यारो यूँ चली थी चाय पर ।।


हम अकेले ही अकेले रह गए ।

याद तेरी मखमली थी चाय पर ।।


प्यार का दीपक बुझा तुम चल दिए..

आरजू की लौ जली थी चाय पर ।।


दो नयन मिलते रहे यूँ मिल गए ।

मनचला था ,मनचली थी चाय पर ।।


भीड़ सब तुमको निहारे दिलरुबा ।

यार कितनी खलबली थी चाय पर ।।


© विपिन"बहार"

टिप्पणियाँ

  1. वाहहह बहुत खूब लिखा भाई जी।, 🙏

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